उन्मनी वाङमय

२२ डिसेंबर १९३८

२२ डिसेंबर:

एकूण श्लोक: ८

 

संध्याकाळी ०७.२८

 

सिद्धांत म्हणजे विपरिणाम।

आत्मरूपला कीं इंद्रियग्राम।

स्वर्ण शिखरलें जणुं पदश्रीवाम।

सप्तमशीर्ष हें वैनायक्याचें    ।।        ।।१।।

 

संध्याकाळी ०७.३५

 

नीलांबरीचें तेज:श्री बिंब।

शुक्लमेघाचा कीं पीतगर्भ।

मध्यपारिजाताचा कौलसौरभ।

प्रथमोद्गारला या पीठीं! ।।          ।।२।।

 

धवलगिरी हा धीटतेचा।

आणि पूर्णोत्कर्ष प्रातिभाचा।

कलशाध्याय संज्ञानेश्वरीचा।

अमृतानुभवाचा कीं श्रीहरि: ॐ ।।        ।।३।।

 

संध्याकाळी ०७.४८

 

सप्तमरूद्राचा द्वादशनेत्र।

संविधेयांचा समुत्कर्ष सुपूर्त।

आत्मरसाचा उद्विलास श्वेत।

मुक्ताकार आनंदरूद्र हा!  ।।        ।।४।।

 

मोदप्रमोदाचे वाम दशिण पंथ।

रुद्रानंदभूमिकेंत होती केंद्रस्थ।

स्वप्न सौषुप्त् एकवटे कीं शुक्लजागृती।

निरवस्थेचें हें बालबिंब! ।।            ।।५।।

 

संध्याकाळी ०७.५४

 

आत्मौपम्यभाव येथला उदयगिरी।

वार्तिकभानाची ही शर्वरी।

हीरकदर्शनांची आषाढसरी।

अभंग स्वस्वरूप कीं धाराकृत! ।।        ।।६।।

 

व्यष्टिसमष्टीचें अद्वैतविधान।

पारमेष्ट्याचें प्रत्यगालोचन।

नैरवस्थ्याचें सहजसिद्धविंदान।

सिद्धांतभूमि ही   ।।          ।।७।।

 

संध्याकाळी ०८.०८

 

सप्तद्रष्टारांचा संयुक्तचक्षु।

सप्तलोकींचा स्वच्छंदभिक्षु।

महाकारणाचा कीं सुवर्णपक्षु।

उत्थानला समाधव्योम्नीं! ।।              ।।८।।

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