उन्मनी वाङमय

विशुध्द चक्र

विशुध्द चक्र:

१) मूळ श्लोक: तदेतत्पूर्णगिर्याख्यं पीठं कमलसंभव . कण्ठकूपे विशुद्धाख्यं यच्चक्रं षोडशास्रकम् - योगशिखा ५ (९)

२) पर्यायी नावे:

३) मात्रा: म

४) देह: कारण

५) अवस्था: सुषुप्ति

६) अभिमान: प्राज्ञ

७) भोग: आनंद

८) गुण: मूर्तिमंत तम

९) शक्ती: अव्यक्त स्वरात्म

१०) तत्व: तेज

११) वेद: सामवेद

१२) अग्नि:

१३) ऋषी: अग्नि

१४) अष्टांग: कला

१५) उपवायू: कूर्म

१६) मुद्रा: हं-लिंग

१७) स्थान: कंठ

१८) अवयवांवर ताबा: घशात उघडणारी सात द्वारे

१९) दले: १६

२०) बीजे: अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ॠ,लृ,लॄ,ए,ऎ,ओ,औ,अं,अः

२१) दलातील शक्ती: सर्वतोभद्रा, प्राणधारिणी, सप्तद्योतिनी, ब्रह्मायणी, शबरी, लोहिता, यक्षिणी, सौभाग्यदायिका, भानुमति, मदालसा, शिखरिणी, छाया, विष्णूप्रिया, विश्वोदरा, माया, चित्रघंटा

२२) आनंद: हुम, फट, वौषट, स्वाहा, स्वधा, मन, अमृत, गांग, शुध्द, रप, धर, नील, धीम, प्राण

२३) देवतेचे अधिष्ठान: जीवात्मा

२४) वार: शनिवार

२५) मोक्षपुरी: द्वारका

२६) वायू: उदान

२७) वाचा: मध्यमा

२८) चक्र जागृत झाल्यावर:

२९) अनुभव: धूम्र

३०) मुक्ती: सरूपता

आमचा पत्ता

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