उन्मनी वाङमय

नाथ समर्थ चौरंगी। महाराज राजयोगी

२०-१०-१९३८

 

नाथ समर्थ चौरंगी। महाराज राजयोगी                       ।।१।।

योगि ज्ञानियाचा राव। रिद्धि सिद्धि सावयव                 ।।२।।

ज्याचें नाम घेतां मुखीं। धन्य होइजे त्रिलोकीं               ।।३।।

ज्ञान प्रगटे अंतरीं । ऐसी प्रसादाची थोरी                     ।।४।।

टीकादासाचें माहेर। ब्रम्हविद्येचें भांडार

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