प्रकाशित साहित्य

पान ६५/१०

 

मृत्यू माते! माझे तुला हे वंदन।

तुझे केले ध्यान आज वरी।।

मर्त्य जीविताची परमोच्च् परिणति।

असे मृत्यूस्थिति मोदपूर्णा।।

देहाच्या रंगणी खेळियेला खेळ।

प्राप्त् ही सुवेळ विश्रांतीची।।

प्रति श्वासासवें सांडियले दु:ख।

आतां उरें सुख चिरंतन।।

 

भूतकाल गेला, इथे टाकूनियां।

भविष्याची छाया, दिसे दूर।।

सख्या वर्तमाना, तुझ्या पंखावरी।

बसूं दे क्षणभरी, अभाग्याला।।

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