२० जानेवारी:
एकूण श्लोक: ८
संध्याकाळी ०५.५०
क्षराच्या संग-मर्मरीं।
वोपिली श्रीतेज:स्वाक्षरी।
अक्षरत्वाची प्रभाभास्वरी।
माध्यान्हली क्षरगर्भीं ।। ।।१।।
संध्याकाळी ०५.५६
चतुर्वाणींचे चार मिनार।
मध्यें विलसे गायत्री निराकार।
त्रिपाद तिचा तत्त्वदेह विस्तार।
परेंहूनि जो परौता ।। ।।२।।
संध्याकाळी ०६.००
तीन गर्भ एका गर्भागारीं।
तीन नेत्र स्फुटले कीं गौरभालावरी।
तीन आदेश व्यक्तले ‘शं’ कुहरीं।
परेपल्याड परात्परले! ।। ।।३।।
पवित्रक हें त्रिदर्भ।
त्रिबीज येथला संदर्भ।
कुटस्थाचा निर्गुण पाउकागर्भ।
त्रिवेदविद्या ही ।। ।।४।।
गाढ गाढ तम:परस्तात्।
उदिता या श्री त्रिकूट विद्युत्।
ब्रह्मनिरुक्ति:सा जान्हवी संवित्।
प्रफुल्ला पुत्रिता च बीजमातर्! ।। ।।५।।
षट्कोनांत व्याप्त् त्रिमूर्ती।
षड्दर्शनांत भास्वरली कीं श्रुती।
षड्बीजांत सामोरली श्रीसावित्री।
सप्तमा सिंधूच्या उदगयनीं ।। ।।६।।
संध्याकाळी ०६.३२
परेचें क्रांतिवृत्त त्रिकोणलें।
चतुर्थनाद त्रि:सुवर्णले।
त्रैलोक्यभाव सूक्ष्मतनले।
संवित्-शून्यले महानुभावीं! ।। ।।७।।
संध्याकाळी ०७.००
परेचा सूक्ष्मेंत प्रलय।
सत्तेचा चितींत उन्नय।
भीमेचा अमरजेंत संजाय।
बीज विद्येंतील ‘श्रीगं’ भान हें ।। ।।८।।