१७ फेब्रुवारी
एकूण श्लोक: ४
सकाळी १०.१५
मरकतभू ही स्वयं-आद्या।
माणिकभू ही सूक्ष्मा स्वयमापाद्या।
मौक्तिकभू श्रीसंवित्संवेद्या।
नील-भू स्वायंभुवा श्री! ।। ।।१।।
परामूर्ति मरकत स्थंडिलीं।
सूक्ष्मा माणिक महाराऊळीं।
संवित् श्री मौक्तिक सलिलीं।
व्योमदर्पणीं नीललिंग! ।। ।।२।।
सकाळी ११.१७
शब्दपीठ विस्तारलें मरकत देहीं।
अर्थदेह स्वरूपले माणिक गेहीं।
अन्वय प्रतिबिंबले मुक्ताजलप्रवाहीं।
नीलमण्यांत बीज रश्मी ।। ।।३।।
नीलतेजीं अवधूतलीं ‘अक्षरी’।
अन्वयते महामौक्तिक नीरें।
शब्दमूर्ति मरकत क्षीरें।
अर्थतत्त्वें अन् रक्तस्नात! ।। ।।४।।
सकाळी ११.४५