२३ डिसेंबर:
एकूण श्लोक: ६
रात्रौ १०.०८
कौल म्हणजे पुनर्बीजनिक्षेप।
विश्वक् स्थितीचा व्यवस्थित संक्षेप।
अंत:स्वमौक्तिकांचा निरवस्थ उत्क्षेप।
वैनायक्य हें अष्टामोत्तम ।। ।।१।।
रात्रौ १०.१३
मूलकुळिंचा आशीर्वच सेक।
सप्त्भूमिकांचा सहजोद्रेक।
संवित्ज्वालेचा महाप्रकाशक।
कौलभाव हा कौस्तुभमणि! ।। ।।२।।
रात्रौ १०.२२
नैष्कर्म्य कीं कर्मांगदैवत।
नि:स्व कीं अष्टावसु साक्षात्।
कलेवर कीं अजर अमृत।
कौल हा असंकल्प्य संस्कार ।। ।।३।।
रात्रौ १०.२९
सौभाग्य सीमा ही कुशला संस्कृतिची।
नि:शेषस्थिति उपादानवासनेची।
तुरीयागति चतु:श्रौतस्वाची।
कौल म्हणजे स्वरूपकुलावतंस!।। ।।४।।
चतुष्कोषांचे आनंदोत्थान।
व्याहृतित्रयाचें महोद्भावन।
अवस्थाष्टकाचें नवोनवविधान।
चरमा ही कौलभू ।। ।।५।।
रात्रौ १०.४०
येथ भोगा निरवस्थेचें अवस्थान।
येथ त्यागा कर्मकोशांचें संधान।
येथ मागा प्रेमपूर्तीचें निर्वाण।
सुखेनैव वागा महाजीवनीं! ।।६।।
रात्रौ १०.४५