उन्मनी वाङमय

१९४२ मधील श्लोक

१९४२:

एकूण श्लोक: ७

 

जुलै, दि. १७: ५

ऒक्टोबर, दि. ४: १

नोव्हेंबर, दि. २१: १

 

१७ जुलै:

 

सकाळी ११.५५

 

अक्षरज्ञान संततीचा अभिषेक।

तेथ सुवर्णप्रवाहीं भास्वरलें शतैक।

‘महासिद्धांत’ मूर्तीचा कुरूष्व व्यतिरेक।

तेथ नव्व्याण्णवावें धूतदर्शन।। ।।१।।

   

अक्षरमात्रांत साध्य सिद्धांतलें।

किरणावलींत अर्थबिंब प्रभातलें।

सप्त्व्याहृतींत ‘रं’ बीज माध्यान्हलें।

परात्परपदस्पर्श येथ शब्दीं  ।। ।।२।।    

 

नवनवांचा नवोत्तम गुणोत्कर्ष।

विश्ववाग्यज्ञाचा अमृतावशेष।

जहदजहल्लक्षणांचा उर्वरीत निर्देश।

वाक्य मूर्तींत या  ।। ।।३।।

   

अनाहतांतील एक एक लल्कार।

शरीरस्थ संवित्पूजनाचा वषट्कार।

वार्तिक अनुभूतींचा सोहंकार।

नव्व्याण्णवावें पूर्णदर्शन हें! ।। ।।४।।

   

वसुविद्येचा विभववासुकी।

वैश्वानरांचा कौस्तुभकौतुकी।

मधुविद्येचा महामणि मस्तकीं।

अवधूतें स्थापिन्नला! ।। ।।५।।

 

४ नोव्हेंबर

 

‘भक्तकार्यकल्पद्रुम   गुरूसार्वभौम श्रीमद्राजाधिराज

योगीमहाराज त्रिभुवनानंद  अद्वैत अभेद निरंजन निर्गुण

निरालंब परिपूर्ण सदोदित  सकल मतस्थापित

श्रीसद्गुरू माणिकप्रभु   महाराजकी जय’।। ॥१॥    

 

२१ नोव्हेंबर    

 

रात्रौ १०.१३

 

स्पर्शमण्यांची माळा ओघळली।

श्याममेघींची वसुधारा पाघळली।

कीं या क्षणीं सहस्त्र सहस्त्रारें साखळली।

द्वैतादैत समाधि हा!!!  ।। ।।१।।  

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