उन्मनी वाङमय

७ ऑगस्ट १९४१

७ ऑगस्ट

एकूण श्लोक: ५

 

रात्रौ १०.१५

 

मंगलाचरणाचें आद्य अक्षर।

आवहनमंत्राचा आदिम स्वर।

उदयशैलीचें संविद्बिंबभास्वर।

प्रकटविण्याचा सोनसमय हा! ।।                  ।।१।।    

 

बिंदू बिंदूत मधुविद्या प्रस्त्रवली।

रेणुरेणूंत चित्स्फूर्ति चमकली।

अणु अणूंत संज्ञान विद्युत् संचरली।

श्रवण महोत्सव भोगूं या! ।।        ।।२।।    

 

रात्रौ ११.००

 

गिरिशिखरीचीं वितळविली हिमें।

राजनगरीची भस्मविलीं धामें।

आकारविली अंतरंगीचीं दहरव्योमें।

सद्य:क्षणाच्या पूर्तीसाठीं  ।।                    ।।३।।    

 

उडत्या शकुंताचा निनादला पांख

भृगुभागवताची उद्दीपली झ्याक।

संवित्सरस्वतीचा खुलला श्रृंगार दिमाख।

श्रमणांचा श्रवणभोग हा!।। ।।४।।    

 

बीज वाटिकांचा दरवळे सौरभ।

मंत्रतारकांनीं दीपविलें आंतर्नभ।

ऋद्धिसिद्धींनी मेळविले यज्ञांगदर्भ।

महाब्राह्मण यजमान येथें!   ।।            ।।५।।

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

दूरध्वनी क्रमांक

+91-20-24338120

+91-20-24330661

+91 90227 10632

Copyright 2022. Maharshi Nyaya-Ratna Vinod by Web Wide It

Search