उन्मनी वाङमय

२४ जानेवारी १९३९

२४ जानेवारी:

एकूण श्लोक: १०

 

दुपारी ०१.३०

 

‘हं’ इति श्वासनलिका प्रशोधकम्।

‘पं’ इति ‘रयि’ प्राणसंव्यवस्थापकम्।

‘ळं’ इति कुहरस्थ सुषुम्ना व्यापकम्।

स्वस्तिश्रिये! ‘हपळा’त्मके! ।।            ।।१।।    

 

‘ज्ञं’ इति श्रीसंकल्प पादुकारेणुकम्।

‘तं’ इति श्रीमहाकारणमृत्यणुकम्।

‘मं’ इति महानुभाव मणिसूर्यख्यापकम्।

नमोSस्तुते ‘ज्ञतमे’श्वरि! ।।          ।।२।।    

 

दुपारी ०१.४७

 

‘श्रीं’ इति संविद्ज्योति वरुणांचलम्।

‘र्‍हीं’ इति शुक्लाध्यस्त प्राणपंचकसंयामकम्।

‘क्लीं’ इति श्यामशून्य ज्योति: प्रदर्शकम्।

नमाम: त्वा सरलानने! ।।                ।।३।।    

 

दुपारी ०१.५६

 

जीवकोटीचे अंतर्घटक।

तत्त्वोल्लास हे नवबीजक।

जड-अजड संमिश्र असंख्य।

क्षराविष्कार अक्षराचा   ।।          ।।४।।    

 

पंचकोशांच्या मणिमंचकीं।

ऊर्ध्वद्विदेहांच्या शरण अंकीं।

कुशलित-संस्कारांच्या महामरवीं।

अक्षर न्यासांचा सहज प्रकर्ष! ।।            ।।५।।    

 

दुपारी ०२.०७

 

संचित प्रवाहांचें पुन:संयोजन।

संस्कार समीरांचें संज्ञानजन्य संकलन।

अतीत अनागताचें कुशलस्थ वर्तमान।

बीजन्यास प्रक्रिया ।।            ।।६।।    

 

दुपारी ०२.२२ 

 

नवनाथतत्त्वें हीं नवमौक्तिकें।

षट्कोनमंदिरींची गर्भकौतुकें।

वैखरलेलीं संवित्चितिसुखें।

पंचदशी ही निराकार!   ।।        ।।७।।    

 

दुपारी ०२.२८

 

शुक्लपक्ष हा दशपंचतिथींचा ।

मत्स्य.गो.च्या एकोदित दीप्तीचा।

‘श्रीबीजंमा’च्या विद्यापयोधरीचा।

क्षीरसमुद्र कीं साक्षात्!   ।।              ।।८।।    

 

दुपारी ०२.४०

 

स्थूल सौभाग्यांचा वर्षाव।

सूक्ष्म क्षेमांचा आविर्भाव।

अज्ञात आशींचा प्रभाव।

‘बीजंमा’ च्या राऊळीं  ।।            ।।९।।    

 

दुपारी ०२.५०

 

अठ्ठावीस तेजांचा हा नक्षत्रराशी।

निक्षेपिला श्री श्री श्री धुंडिनाथचरणांपाशीं।

अवतरला जो आदिनाथ श्रीवंशीं।

आदिपुत्रक नाथगुरू! ।।            ।।१०।।    दुपारी ०२.५६

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