उन्मनी वाङमय

२९ मे १९३९

२९ मे 

एकूण श्लोक: ८

 

संध्याकाळी ०४.५०

 

मितकाय भुवर्काय स्वर्काय।

स्फटिककाय श्रीकाय वियत्काय।

षडैश्वर्याचे युक्तोत्तम जे विभूतिकाय ।

कायाकल्पाचें सप्तिवधान हें ।।            ।।१।।    

 

‘मितकाय’ म्हणजे उक्ताश्रुता वाक्यरचना।

दोन अभिप्रायांची सम्यक् संयोजना।

क्रिया प्रतिक्रियांची सफलित विभावना।

व्यवहृति मूल वाग्भूमि ही ।।          ।।२।।    

 

संध्याकाळी ०५.१५

 

‘भुवर्काय’ ही केंद्रस्था एकांगस्थायिनी।

उक्तश्रुतांची श्रीजान्हवी उगमैवमुखस्वरूपिणी।

सहस्रारलेली की तत्रस्था च मूलाधिष्ठानी।

द्रष्टारांची एकनेत्रा दृक्!  ।।          ।।३।।    

 

उक्तिश्रुतीचें पैलतीर।

‘स्वर्काय’ हा अभंगवाणीचा आविष्कार।

अतिद्वंद्वाचा सदेह साक्षात्कार।

तृतीय कल्प हा वाग्यज्ञाचा।।            ।।४।।    

 

संध्याकाळी ०५.२५

 

बोलता एकता जेथ मावळले।

द्वंद्वातीत अभिप्राय जेथ पालवले।

निरवस्थ-स्वानुभूतियान जेथ उद्भावलें।

स्वर्गति ही स्वर्कायाची  ।।              ।।५।।    

 

अभंगभावाचा येथमात्र आविष्कार।

विधेय-विधान-बिंदूंचा आलोक निराकार।

स्व स्वरूपाचा सहजैकरस साक्षात्कार।

स्वर्भावन हें तृतीया श्रेणी ।। ।।६।।    

 

प्रथमश्रेणींत दुभंगलेंलें।

द्वितीयश्रेणींत एकांगलेलें।

तृतीय श्रेणींत अभंगलेलें।

वाग्-बिल्व हें स्वानुभूतिप्रतीक!।।        ।।७।।    

 

संध्याकाळी ०५.४२

 

साक्षात्कुरू स्वर्कायाची समाधसुषमा।

नमस्कुरू निरवस्थ प्रत्यया आदिश्यामा!।

स्वीकुरू श्री-श्री-श्री-स्वानुभूति भूमा।

बीजगुह्यें हीं आदिनि:श्वास!  ।।          ।।८।।  

 

संध्याकाळी ०६.००

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

दूरध्वनी क्रमांक

+91-20-24338120

+91-20-24330661

+91 90227 10632

Copyright 2022. Maharshi Nyaya-Ratna Vinod by Web Wide It

Search