उन्मनी वाङमय

श्लोक १ ते १०

दुपारी ०३.२५

 

विश्वक्-स्थिति, व्युत्थिति, व्यूति।

विकृति, विषुवस्थिति, व्यवहृति।।

व्याहृति, व्युत्पत्ति, आणि संव्यवस्थिति।

नवरश्मि महाजीवन बिंबाच्या   ।। ।।१।।

 

 

विश्वक्स्थिति म्हणजे सदसव्यतिरिक्त ‘नासदीय’ विश्वभाव।

व्युत्थिति म्हणजे ‘एको बहुस्याम्’ प्रजायेय।।

व्यूति अनेक इच्छा तंतूंचा समन्वित जालदेह।

प्रथमा ही विश्वभाव त्रिपुटी  ।। ।।२।।

 

व्यूति देहीं संबद्धतताच विविध इच्छा रश्मि।

विश्वबीज सन्मुखे विकृति धर्मीं।।

स्फुरतां भोक्तृभाव व्यक्तली विषुवभूमि।

व्यवहृति म्हणजे भोक्तृ - भोग्य - व्यवहार  ।। ।।३।।

 

व्याहृतींत होई अवस्थात्रय प्रकट।

व्युत्पत्ति म्हणजे अनुभव मूलार्थ भेट।

संव्यवस्थिति म्हणजे अनुभवविशेषांचे प्रस्फोट।

संयुक्तले जेथ यथामूल्य  ।। ।।४।।

 

विश्वक् स्थितींत सद् सद्भावाचें दहिंवर।

आवरणभावें झालें व्यक्ताकार।।

जेथ अविशिष्ट अव्याकृतांचा संभार।

प्रसिद्धला अस्पष्टतया   ।। ।।५।।

 

निशा कीं गाढ गाढ अंधारांची राशि  ।

निद्रा कीं नटली अबोधानुभव वेषीं।

मृति कीं मूर्तली निश्चेष्ट देहदेशीं।

प्रतीकें हीं विश्वक् स्थितीचीं  ।।                ।।६।।

 

दुपारी ०४.२७

 

व्युत्थिति ही इच्छाशक्तीचे प्रथम स्फुरण।

समष्टि स्वरूपतेचें प्रथम व्यष्टीकरण।।

निस्तब्ध अवकाशीचा स्फूर्तला कीं पवन।

रेतोग्दार आदिम हा   ।। ।।७।।

 

पुष्पकोशीं प्रकटला केसर।

सलिल पृष्ठीं उत्तंसला कीं तुषार।।

सुषुप्त्यंतीं विचरला जागर।

जणूं हा पहिला वहिला  ।। ।।८।।

 

व्यूति म्हणजे व्युत्थितींची संगति।

मंत्रामंत्राची जणुं संहितास्थिति।

प्रकटल्या इच्छाविशेषांची समिष्टमूर्ति।

विकृतीचा पार्श्व हा  ।।          ।।९।।

 

तंतुजाल हें विस्तरलें इच्छा स्फुरणांचें।

रक्तबिंब कीं मूलानुरक्ति किरणांचें ।।

महागीत कोटिसहस्त्र चरणांचे।

व्यूति वैशिष्ट्य एवंरूप ।। ।।१०।।

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

दूरध्वनी क्रमांक

+91-20-24338120

+91-20-24330661

+91 90227 10632

Copyright 2022. Maharshi Nyaya-Ratna Vinod by Web Wide It

Search