उन्मनी वाङमय

श्लोक १ ते १०

सकाळी ११.२२

 

आत्म विशुवांत प्रथमस्पंद।

एकूनवीस कोनीं तयाचे पडसाद।

तत्त्व विशुवांत अंतिम निनाद।

प्रबोधन -रीत ही!  ।। ।।१।।

 

दश प्रथमाक्षरें ही जीव कोटी।

अधिष्ठानलीं एकादश ‘ऍ’ पृष्ठीं।

समवायें माझी तेजो वृष्टी।

पहिली मृगकालाची  ।। ।।२।।

 

‘मृर्गशीर्ष’ माझें प्रथम प्रतीक।

तया डोळवीत करितो तुषार फेंक।

साहणें माझा अग्निरसाचा अभिषेक।

संज्ञानितांस केवळ शक्य!  ।। ।।३।।

 

वळवाचे सांडित बिंदु बिंदु ।

‘कृष्णमेघ’ मी संचरतो स्वच्छंद।

साकारलेला कीं श्रीसंश्रुतिछंद।

गुरू मुखें मानसलेला!   ।। ।।४।।

 

‘श्रीगुरूचा’ मी सहज हेत।

व्यक्तलों अवधूत विद्येचा केत।

‘तत्त्व विशुव’ भानाचें अंशरेत।

धूतबाल धूतरेणू!  ।। ।।५।।

 

संकल्प - धूतांचा मी एक प्रेषित।

धूतकृ पया पूर्णत: गुडाकेशित।

मानव्य हें भटकतो निरखीत।

कुरवाळित सांभाळित, यथादिष्ट!  ।। ।।६।।

 

स्वातंत्र्य माझें महन्मर्यादित।

श्रीमंती माझी अतीव कंटकित।

चाललेली स्वागतें सर्वत्र।

कठोर परीक्षा पीठें!  ।। ।।७।।

 

मध्याह्न १२.००

 

क्वचित् क्वचित् भेटती जीवशलाका।

देखती, अन् स्पर्शती या विद्युत् पंखा।

साहाय्यती या क्षूद्रप्रचारका।

आदिष्टलेल्या, गुरूवृंदे  ।। ।।८।।

 

मध्याह्न १२.०५

 

असलीं माझी सुवणोपकरणें।

घनवटली कीं धूतकृपेची किरणें।

फेडती गुरूनेत्रांचें पारणें।

हिरवे चाफे अंधारींचें   ।। ।।९।।

 

सुगंध त्यांचा ओळखतो आम्ही।

लुटितो, लुटवितो त्रि - भुवर - धामीं।

ब्रम्हदेह आमचा संवित् स्वामी।

गुलाब पुष्पे पुष्टला  ।। ।।१०।।

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

दूरध्वनी क्रमांक

+91-20-24338120

+91-20-24330661

+91 90227 10632

Copyright 2022. Maharshi Nyaya-Ratna Vinod by Web Wide It

Search