उन्मनी वाङमय

आज्ञाचक्र

आज्ञाचक्र:

१) मूळ श्लोक: आज्ञानाम भ्रुवोर्मध्ये द्विदलं चक्रमुत्तमम - योगशिखोनिषद १:१७५, आज्ञा चक्रं च मस्तकम - योगकुंडल्युपनिषद ३:११, तुर्यं भ्रूमध्यसंस्थितं- त्रिशिखोपनिषद, 

२) पर्यायी नावे: अग्नि

३) मात्रा: अर्धमात्रा

४) देह: महाकारण

५) अवस्था: तुर्या

६) अभिमान: प्रत्यगात्मा

७) भोग: आनंदावभास

८) गुण: शुध्द सत्व

९) शक्ती: इच्छाशक्ति

१०) तत्व: वायू

११) वेद: अथर्वण

१२) अग्नि: संवर्तक नित्याग्निहोत्र

१३) ऋषी: ईश्वर

१४) अष्टांग: ज्योति-रूप

१५) उपवायू: देवदत्त

१६) मुद्रा: क्लीं-मोक्ष

१७) स्थान: भ्रूमध्य

१८) अवयवांवर ताबा:

१९) दले: २

२०) बीजे: हं, क्षं

२१) दलातील शक्ती: महाकाली, महालक्ष्मी

२२) आनंद: सहज, नित्य

२३) देवतेचे अधिष्ठान: आत्मा

२४) वार: रविवार

२५) मोक्षपुरी: काशी

२६) वायू: प्राण

२७) वाचा: -

२८) चक्र जागृत झाल्यावर: शुभ्र स्फटिक

२९) अनुभव:

३०) मुक्ती: सायुज्यता

आमचा पत्ता

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