उन्मनी वाङमय

स्वाधिष्ठान चक्र

स्वाधिष्ठान चक्र:

१) मूळ श्लोक: स्वशब्देन भवेत्प्राणः स्वाधिष्ठानं तदाश्रयम स्वाधिष्ठानं ततश्चक्रं निगद्यते - ध्यानबिंदु ४८

२) पर्यायी नावे:

३) मात्रा: अ

४) देह: स्थूल

५) अवस्था: जागृत

६) अभिमान: विश्व

७) भोग: सुख-दुःख-स्थूल

८) गुण: रजोगुण

९) शक्ती: सावित्री

१०) तत्व: पृथ्वि

११) वेद: ऋग्वेद

१२) अग्नि: आहवनीय

१३) ऋषी: इंद्र

१४) अष्टांग: -

१५) उपवायू: धनंजय

१६) मुद्रा: क्लीं-क्षमा

१७) स्थान: लिंग

१८) अवयवांवर ताबा: विषयोपभोगाची इंद्रिये

१९) दले: ६

२०) बीजे: बं, भं, मं, यं, रं, लं,

२१) दलातील शक्ती: अव्यंगता, शारदा, वाणी, अमृता, पूर्णा, रोहिणी

२२) आनंद: प्रशस्त, कुरंग, गर्वगत, अवज्ञ, अविश्वास, मूर्च्छित

२३) देवतेचे अधिष्ठान: ब्रह्मा

२४) वार: बुधवार

२५) मोक्षपुरी: कांची

२६) वायू: अपान

२७) वाचा: -

२८) चक्र जागृत झाल्यावर: पीतवर्ण

२९) अनुभव:

३०) मुक्ती: सलोकता

आमचा पत्ता

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