उन्मनी वाङमय

नमोःस्तुते! आदिकल्लोले! अल्लखें!!!।।

२८/७/३९

 

`मी संतांचे लळिवाड।

संत माझें पुरविती कोड।

संतांवाचुनि भव अवघड।

कोणाचेनि न निवारे`।।  

 

२९-८-३९

 

विशेषणवत् विशेषांचा संनिकर्ष।

जीव विकासप्रक्रियेचा हेतुपरामर्ष।

कुशलित संयद्वाम भानांचा आवर्ष।

कूटस्थ स्वरूपाचें त्रिदल हें!  ।।      ।।१।।    

 

आकाशगंगेची बिंदुभूतता।

श्यामशून्याची संविद्मूर्तता।

अपराश्रितांची परात्परता।

मंगलावाप्सि कीं गौरस्फूर्तिची! ।।        ।।२।।    

 

मणिमेखला मार्कण्डेय नि:श्वासांची।

अरूण स्मितांनी प्रभातलेली प्राची।

बुद्बुदतारकांनी खुणविणारी व्योमवीची।

अदितिवृत्ति ही मत्स्यालंकृता  ।।    ।।३।।    

 

स्वस्ति! अदिते! आद्ये! स्वसंवेद्ये!।

कुशलायतनि! `कं बीजे! कैवल्यानवद्ये।

काल-कुलमातर् । दिगंबरि! चिर:सद्ये।

नमो%स्तुते! आदिकल्लोले!अल्लखें!!!।। ।।४।।

आमचा पत्ता

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