उन्मनी वाङमय

सूर्यमणी ओघळले नवलाख। निवृत्तलेल्या सत्कलेंत ।।

२७-६-३९

 

थुइथुई कारंजीं नाचलीं।

भुरूभुरू पाखरें उडालीं।

दुडुदुडु निवृत्ति बागडली।

बीजादेश अंगवला।।                ।।१।।    

 

झर्झरा मागोसली सावली।

भर्भरा दुधाळली गाउली।

थर्थरा तरंगली नाउली।

श्री ब्रह्मदेहोदधींत  ।।              ।।२।।    

 

कूटस्थीं फुलले गुलाब।

सहजें प्रसूतला रत्नबीजगर्भ।

निवृत्तिचे उमलले अंत्यनीलरंग।

निरंशा प्रज्ञानमूर्ती  ।।          ।।३।।    

 

निर्विषय अनुभूति अवीट।

निष्कल स्वानंदाचें चौरंगपीठ।

स्थिर सौभाग्याची कुंकुमतीट।

निवृत्तलेली ज्ञानकला  ।।              ।।४।।    

 

मावळल्या कोटिसूर्यांची दीिप्त्।

पुत्रल्या सहस्त्र दांपत्यांची प्रीति।

उन्मत्तल्या शतैक अवधूतांची भक्ति।

निवृत्तलेली चित्कला ।।              ।।५।।    

 

एकवटल्या व्यक्तित्वाचा प्रेमस्फोट ।

समाधआशींचा उधाण लोट।

कुशलित संचितांचा मांगल्यकोट ।

निवृत्तलेली आनंदकला  ।।            ।।६।।    

 

मुहूर्तैक लुकलुकला ध्रुवतारक।

क्षणैक संततधारला मुक्ताभिषेक।

सूर्यमणी ओघळले नवलाख।

निवृत्तलेल्या सत्कलेंत  ।।              ।।७।।    

 

निर्विषय चितिवर्षा आसन्नली।

निरभ्र पूर्णचंद्रिका सासिन्नली।

रितलेलीं देहपात्रें पूर्णान्नलीं।

निवृत्तलेल्या सि ातानंदभूंत ।।            ।।८।।    

 

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