३-५-३९ ते ७-५-३९
स्वस्ति श्यामे! स्वस्ति त्रिभंग ललिते!।
नियत प्रकाशे! स्वयंसिद्धे! अतिश्रुते!।
संख्याने! अवस्थाप्रतीके! परांज्योति संवित्ते।
स्वान्ने! स्वान्नादे! स्वाहाकार लक्ष्ये!।। ।।१।।
परिशिष्ट प्रसादाची पूर्णाहुती।
वाग्भूयसीची सप्त् श्रीमुद्राकृती।
नि:स्वावस्थेची माध्यान्ह द्युति।
`शं' बीजात्मक `श्यामभू' ही ।। ।।२।।
प्रकाश लेखांची मेघ माऊली।
दृक्श्रेणींची नेत्रबाहुली।
सहस्त्रगंधांची निराकार पाकळी।
अंतिमोत्तम ही श्यामभू! ।। ।।३।।
निष्केंद्र येथलें महावर्तुल।
निष्कंठ येथलें महाभाल।
निष्पाऊकी ही सप्त्मपदीं चाल।
शुक्ल - कृष्ण संगमभू! ।। ।।४।।
शुक्लकृष्णांत संहितलेला यजुर्वेद।
म.गो. विद्येंत व्यक्तलेला आदिनाथ।
वाग्बीज योगासनांचा मूलबंद।
श्यामभू ही स्वाधिष्ठाना ।। ।।५।।
स्थितिगतीची मूलाधार अवस्था।
जनि-मृतीची स्वभाव सहजव्यवस्था।
स्थल - काल निष्ठांची स्वरूपसंस्था।
निवृत्तरूप हें ज्ञानसंवित्तीचें! ।। ।।६।।
सप्त्मेंत या सप्तिंसधू आटलें।
श्याम बिंदूंत या सप्त्लोक मावळले।
`शं' बीजांत श्रीसर्प्त्षी अंतर्धानले।
सप्त्मी ही सप्त्म्यंता ।। ।।७।।
षड्वाग्बीजें मूळलीं, अन् सफळलीं।
षड्गुणैश्वर्येंा मोहोरलीं अन् संमेळलीं।
श्रीषट्चक्रें स्फुरणलीं अन् सहस्त्रारलीं।
श्यामसुंदर अवकाशलिंग हें!!!।। ।।८।।