उन्मनी वाङमय

चित्तीं चित्तीं जागविणें सहजा विरक्ती।

५-२-३९

 

ईशानी श्रीस्वरूपसंवित् जान्हवी।

सूक्ष्मतन्वी बीजोत्तसां प्रभवैष्णवी।

शून्यभास्वरा आगमस्वा ललिताभैरवी।

नवविद्या ही श्रीप्रपंचसारा          ।।१।।

   

बीजविद्येचा हा महानिकाय।

क्षरसृष्टीचा अक्षरात्मकलय।

कर्मविश्वमेघाचें जणुं रजतवलय।

बीजमाला ही ज्योतिर्मयी!।।          ।।२।।

   

पीठीं पीठीं निक्षेपणें एक एक पंती।

कुहरीं कुहरीं उजाळणें एक एक दीप्ती।

चित्तीं चित्तीं जागविणें सहजा विरक्ती।

विनियोगाची प्रक्रिया ही  ।।         ।।३।।

   

त्रित्रिपुटींचें निर्यातन।

अनंततावृत्तीचें उत्थापन।

आगमतंतूचें अखंडाकार संतान।

विनियोगविद्या ही   ।।     ।।४।।

   

बीजनेत्रीं बिंबतीं सर्व अदृश्यें।

बीजरेणुकीं सामावतीं प्रतीतव्य विश्वें।

बीजगोठींत उन्मेषलीं अंतर्रहस्यें।

आंत:सप्त्श्रेणींचीं            ।।५।।

   

विनियोग म्हणजे यथाभूमिप्रतिनिवेश।

संचिताचा क्रियमाणीं सखप्रवेश।

संकर्मविधानाचा व्यक्तिगत-लेशोत्कर्ष।

प्रकट जो स्वांत:संपुटीं  ।।          ।।६।।

   

कर्माटवीचें महाज्वालन।

कुशलित संस्कारागमांचें पुन:संयोजन।

निजस्वरूपलेखेचें पुनर्विंदान।

पुन:संश्रय नवशरण्याचा! ।।        ।।७।।

   

गुप्त्धनाचा कीं प्रकटाविष्कार।

निशागत वा ज्येात्स्नाप्राकार।

श्रीजनांचा वा स्वानंदसंसार।

फुलणार बीजगुहेंत या!   ।।        ।।८।।

 

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

दूरध्वनी क्रमांक

+91-20-24338120

+91-20-24330661

+91 90227 10632

Copyright 2022. Maharshi Nyaya-Ratna Vinod by Web Wide It

Search