उन्मनी वाङमय

७ मे १९३९

७ मे

एकूण श्लोक: ७

 

परिशिष्ट प्रसादाची पूर्णाहुती।

वाग्भूयसीची सप्त् श्रीमुद्राकृती।

नि:स्वावस्थेची माध्यान्ह द्युति।

‘शं’ बीजात्मक ‘श्यामभू’ ही  ।। ।।१।।    

 

प्रकाश लेखांची मेघ माऊली।

दृक्श्रेणींची नेत्रबाहुली।

सहस्रगंधांची निराकार पाकळी।

अंतिमोत्तम ही श्यामभू!   ।।      ।।२।।    

 

निष्केंद्र येथलें महावर्तुल।

निष्कंठ येथलें महाभाल।

निष्पाऊकी ही सप्त्मपदीं चाल।

शुक्ल-कृष्ण संगमभू! ।।          ।।३।।    

 

शुक्लकृष्णांत संहितलेला यजुर्वेद।

म.गो. विद्येंत व्यक्तलेला आदिनाथ।

वाग्बीज योगासनांचा मूलबंध। 

श्यामभू ही स्वाधिष्ठाना  ।।              ।।४।।    

 

स्थितिगतीची मूलाधार अवस्था।

जनि-मृतीची स्वभाव सहजव्यवस्था।

स्थल-काल निष्ठांची स्वरूपसंस्था।

निवृत्तरूप हें ज्ञानसंवित्तीचें!  ।।          ।।५।।    

 

सप्तमेंत या सप्तसिंधू आटलें।

श्याम बिंदूंत या सप्तलोक मावळले।

‘शं’ बीजांत श्रीसप्तर्षि अंतर्धानले।

सप्तमी ही सप्तंम्यता ।।            ।।६।।    

 

षड्वाग्बीजें मूळलीं, अन् सफळलीं।

षड्गुणैश्वर्ये मोहोरलीं अन् संमेळलीं।

श्रीषट्चक्रें स्फुरणलीं अन् सहस्रारलीं।

श्यामसुंदर अवकाशलिंग हें!!!।।          ।।७।।    दुपारी ०१.१०

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