उन्मनी वाङमय

१३ मे १९३९

१३ मे

एकूण श्लोक: ४

 

संध्याकाळी ०६.४०

 

श्वेताब्जाची विशुद्ध धवलिमा।

पीत तत्त्वाची प्रभास्वरा सुषमा।

श्याम सौंदर्याची ऊर्जस्वला अरूणी।

त्रिवृत्कृता ही श्रीसंविद्भूमी ।।            ।।१।।    

 

अधोर्ध्वविश्वांचा स्थाणुमंथा।

पंच बीजांची नवनिष्पन्न कंथा।

गुह्यश्रुतींची बीजवर्णव्यवस्था।

वषट्रूपा ही षष्ठ वाक्। ।।२।।    

 

संध्याकाळी ०७.००

 

उपांत्यश्रेणी, अंत्यप्रवेशिका।

सप्तसागरींची विद्युन्नौका।

अवधूतांची कर्पूरगौर पाउका।

संविद्भावना कलशस्थिती!            ।।३।।    

 

श्याम सौंदर्याची बाललेखा।

शून्यपृष्ठींची आद्याप्रकटरेखा।

कृष्णमयूराची श्रीकैवल्यकेका ।

संविदभू ही ।। ।।४।। संध्याकाळी ०७.१५

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