उन्मनी वाङमय

सहस्रार चक्र

सहस्रार चक्र:

१) मूळ श्लोक: सा काष्टा सा परा गतिः, 

मग ब्रह्मरंघ्री स्थिरावोनी

सोहं भावाच्या बाह्या पसरोनी

परमात्मलिंगा धावोनी आंगा घडे - ज्ञानेश्वरी

२) पर्यायी नावे:ब्रह्मरंघ्र

३) मात्रा: अर्धमात्रा संवित्ति

४) देह: विज्ञान

५) अवस्था: उन्मनी

६) अभिमान: निराभिमान

७) भोग: निरानंद

८) गुण: निर्गुण

९) शक्ती: प्रकाशश्री

१०) तत्व: आकाश

११) वेद: निर्वेद

१२) अग्नि: ज्ञानाग्नि

१३) ऋषी: परब्रह्म

१४) अष्टांग: बिंदु

१५) उपवायू: नाग

१६) मुद्रा: परमात्म प्रकाश

१७) स्थान: मेंदू

१८) अवयवांवर ताबा: सर्व शरीरावर

१९) दले: सहस्र

२०) बीज: लं

२१) दलातील शक्ती: मूलप्रकृति

२२) आनंद: निरानंद

२३) देवतेचे अधिष्ठान: परमात्मा

२४) वार: सोमवार

२५) मोक्षपुरी: अयोध्या

२६) वायू:

२७) वाचा:

२८) चक्र जागृत झाल्यावर: नानावर्ण

२९) अनुभव:

३०) मुक्ती: कैवल्य

 

आमचा पत्ता

Dr. Samprasad and Dr. Mrs. Rujuta Vinod Shanti-Mandir, 2100, Sadashiv Peth, Vijayanagar Col. Behind S. P. college Pune - 411030 

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