१८-२-१९३९
मरकतमरवरीं तत्त्वदेहले प्रतिमादेव ।
माणिक कमलीं प्रकटले श्रीब्रह्मदेव।
मौक्तिकभुवनीं विराजले प्रभवैष्णव।
नीलगर्भीं श्रीनीलकंठ ।। ।।५।।
मरकतीं ज्ञा. नि. गै. संस्थिती।
माणिकदेहीं अनुरक्तली गोरक्षवृत्ति।
सामुद्रमौक्तिकीं संस्पष्टली श्रीमत्स्यस्फूर्ती।
नील व्योम्नीं नाथादि देव!।। ।।६।।
प्रथमरत्न श्री अथर्वणमंत्रमूर्ती।
द्वितीय बीजस्वर सामसंगीती। (ग)
तृतीय द्रव्य ज्ञान ध्यान यज्ञसंपत्ती।
तुरीयांत ऋक् मूल बीजाक्षरी! ।। ।।७।।
स्थूलांतले देह मरकतलेले।
लिंग माणिक वासनारंगीं आरक्तलेलें।
कारणतत्त्व पीतमौक्तिकीं पीतांबरलेलें।
महाकारण नीलांबरस्थ! ।। ।।८।।
मरकतदेशीं व्यक्तली पूर्वा।
माणिक देशीं प्रभासली अपूर्वा।
मौक्तिकमूर्तींत श्रीदक्षिणास्वायंभुवा।
नीलवसना श्रीउत्तरोत्तमा! ।। ।।९।।
मरकतांत तम:संचार।
माणिक मोलाचा रजोगुणाविष्कार।
मौक्तिक जलीं शुद्ध सत्त्वसाक्षात्कार।
नीलांबरीं निर्गुणश्री ।। ।।१०।।
प्रथम वर्ण मरकतदर्पणीं ।
द्वितीय वर्ण रक्तमाणिकरूप क्षात्रगुणीं।
तृतीय मौक्तिकमय ब्रम्हश्री सावर्णी।
निर्वर्णा ही नीलश्री!।। ।।११।।
मरकतशब्दीं रूपावली वासना।
माणिकवाक्यांत प्रकटली भावना।
मौक्तिकगोलीं पूर्णसमन्वित स्थिरप्रज्ञा।
नीलकूटीं स्वरूपावस्थिति ।। ।।१२।।
ध्यानावस्था मरकत प्रतिकीं।
धारणावस्था माणिक - आलोकीं।
समाधि मूलाधारवर्तुल मौक्तिकीं।
संयम नीलबिंदूंत! ।। ।।१३।।
भूस्तत्त्व मरकत विस्तार।
भुवस्तत्त्व माणिक प्राकार।
स्वस्तत्त्व श्रीमौक्तिकाकार।
नीलोत्पल महस्तत्त्व! ।। ।।१४।।
मरकत हें अ कारात्मक।
आणि उ कार - स्वरूप माणिक।
मौक्तिक हें मकार कौतुक।
नीलबिंदू पूर्णप्रणव! ।। ।।१५।।
सलिल सांडता पाउकेवरी।
तेजो बिंब संस्पष्टता पीतांबरी।
समाधि सौख्य समृद्धता अंतरीं।
वेध दिक्षा प्रगटली ।। ।।१।।